सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए)
1.1 प्रारंभिक शिक्षा क्षेत्र शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण भाग है। नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (आरटीई) और भारत के संविधान में अनुच्छेद 21-क एक अप्रैल, 2010 से प्रचालन में आ गए हैं। इसके फलस्वरूप 6-14 वर्ष की आयु समूह के सभी बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा मौलिक अधिकार बन गया है।
1.2 मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने आरटीई अधिनियम के कार्यान्वयन और परिणामस्वरूप सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के सुधार के संबंध में एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी। विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर, एसएसए के मापदंडों को आरटीई के मापदंडों और मानकों के अनुरूप बनाने के लिए संशोधित किया गया है उदाहरण के लिए इसमें शिष्य-शिक्षक अनुपात, शिक्षक-कक्षा अनुपात आदि शामिल हैं। मापदंडों में किए गए मुख्य परिवर्तन निम्नलिखित से संबंधित हैं:-
(i) राज्य के नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम में राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित पड़ोस के मापदंडों के अनुसार नए प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल खोलना।
(ii) दो वर्ष की अवधि के अंदर ईजीएस के अंतर्गत आने वाले केन्द्रों को नियमित औपचारिक स्कूलों में परिवर्तित करके सभी वैकल्पिक स्कूल सुविधाएं उपलब्ध कराना।
(iii) आरटीई अधिनियम के तहत निर्धारित शिष्य-शिक्षक अनुपात के अनुसार अतिरिक्त शिक्षक उपलब्ध कराना।
(iv) अतिरिक्त कक्षा-कक्ष उपलब्ध कराना ताकि प्रत्येक शिक्षक के लिए अपना कक्ष हो, साथ ही मुख्य-अध्यापक-सह-अधिकारी के लिए एक कक्ष का प्रावधान करना।
(v) सभी बालिकाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के बच्चों तथा गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के बच्चों के लिए प्रतिवर्ष वर्दी के दो सेटों का प्रावधान करना।
(vi) नियमित स्कूलों द्वारा सेवा प्रदान नहीं किए जाने वाले स्कूलों में बच्चों के लिए परिवहन सुविधा की लागत
(vii) नियमित स्कूलों में आयु के अनुरूप प्रवेश को सुविधाजनक बनाने के लिए स्कूल से बाहर और स्कूल छोड़ देने वाले बच्चों के लिए विशेष प्रशिक्षण।
(viii) कक्षा-5 और कक्षा-8 में क्रमश: प्राथमिक और उच्च प्राथमिक साइकिल चरण विलयित करके आठ वर्षी प्राथमिक शिक्षा साइकिल चालने में राज्यों की सहायता के लिए अध्यापन शिक्षण उपस्करों का प्रावधान करना।
(ix) नियमित स्कूलों द्वारा सेवा प्रदान नहीं किए जाने वाले सुदूरवर्ती एकाकी क्षेत्रों के बच्चों और शहरी क्षेत्रों में वयस्कों का संरक्षण न मिलने वाले बच्चों के लिए आवासीय स्कूल।
(x) ईबीबीएस के लिए अतिरिक्त 1073 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों का अनुमोदन।
1.3 6 से 14 वर्ष तक के आयु समूह के बच्चों के लिए सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम राज्यों की भागीदारी से कार्यान्वित किया जा रहा है। सितम्बर, 2010 तक की सर्व शिक्षा अभियान की उपलब्धियों में निम्नलिखित शामिल हैं:-
क. 3,09,727 नए स्कूल खोलना
ख. 2,54,935 नई स्कूल बिल्डिंगों का निर्माण
ग. 11,66,868 अतिरिक्त कक्षा-कक्षों का निर्माण
घ. 1,90,961 पेयजल सुविधाओं का प्रावधान
ङ. 3,47,857 शौचालयों का निर्माण
च. 11.13 लाख शिक्षकों की नियुक्ति
छ. 14.02 लाख शिक्षकों को सेवाकालीन प्रशिक्षण (प्रतिवर्ष)
ज. 8.70 करोड़ बच्चों को नि:शुल्क पाठ्यपुस्तकों की आपूर्ति (प्रतिवर्ष)
1.4 सर्व शिक्षा अभियान की मध्यस्थाओं के फलस्वरूप स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या में काफी कमी आई है। एसआरआई - आईएमआरबी द्वारा किए गए स्वतंत्र अध्ययन के अनुसार स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या 2005 में 134.6 लाख थी जो 2009 में घटकर 81.5 लाख रह गई।
1.5 नौंवी योजना के दौरान सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम के अंतर्गत सहायता 85:15 के भागीदारी प्रबंधन पर आधारित थी। दसवीं योजना के दौरान यह भागीदारी प्रबंधन 75:25 के आधार पर थी (वर्ष 2005-06 और 2006-07 के दौरान पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 15% राज्य हिस्सेदारी पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय द्वारा वहन की गई)। 11वीं योजनावधि के दौरान वित्तीय पैटर्न इस प्रकार था:-
§ योजना अवधि के पहले दो वर्षों के लिए 65:35, तीसरे वर्ष के लिए 60:40, चौथे वर्ष के लिए 55:45 और तत्पश्चात् 50:50 । आठ पूर्वोत्तर राज्यों के लिए कार्यक्रम के अंतर्गत निधियन पैटर्न 90:10 है जिसमें सर्व शिक्षा अभियान के केन्द्रीय बजट में पूर्वोत्तर राज्यों के लिए उद्दिष्ट 10% निधियों में से केन्द्रीय हिस्सेदारी होगी।
1.6 केन्द्र सरकार ने 1.4.2010 से 2010-11 से 2014-15 तक की अवधि के लिए आरटीई-एसएसए कार्यक्रम के संबंध में निधियन की पद्धति संशोधित की है तथा यह नीचे दिए अनुसार होगी:-
(क) उत्तर-पूर्वी राज्यों के अलावा राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए केन्द्र सरकार और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के बीच निधियन की पद्धति 65:35 के अनुपात में होगी।
(ख) 8 पूर्वोत्तर राज्यों के लिए
8 पूर्वोत्तर राज्यों के लिए केन्द्र और राज्य के बीच 90:10 के अनुपात में मौजूदा निधियां शेयर करने की पद्धति जारी रहेगी।
1.7 इस कार्यक्रम के तहत समूचा देश शामिल है तथा यह 12.3 लाख बस्तियों के 19.4 करोङ बच्चों की आवश्यकताओं पर ध्यान देता है। इस कार्यक्रम के तहत ऐसी बस्तियों में नए स्कूल खोलने का प्रावधान है जहां स्कूली सुविधाएं नहीं हैं तथा अतिरिक्त शिक्षण कक्षा, शौचालय, पेयजल, अनुरक्षण अनुदान और स्कूल सुधार अनुदान के माध्यम से मौजूदा स्कूली अवसंरचना को सुदृढ करने का भी प्रावधान है। कार्यक्रम के तहत ऐसे विधमान स्कूलों में अतिरिक्त शिक्षक उपलब्ध कराए जाएंगे जहां शिक्षकों की संख्या पर्याप्त नहीं हैं। गहन प्रशिक्षण, अध्ययन-अध्यापन सामग्री तैयार करने हेतु अनुदान तथा शैक्षिक सहायता ढांचा विकसित करके मौजूदा शिक्षकों की क्षमता में वृद्घि की जाएगी। सर्व शिक्षा अभियान के तहत बालिकाओं तथा कमजोर वर्ग के बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस कार्यक्रम के तहत इन बच्चों के लिए निःशुल्क वर्दी और पाठ्यपुस्तकें प्रदान करने की व्यवस्था सहित कई पहल की गई हैं। सर्व शिक्षा अभियान में डिजीटल अंतराल को पाटने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में भी कंप्यूटर शिक्षा की व्यवस्था है।
1.8 दो अतिरिक्त घटक अर्थात् एनपीईजीईएल और केजीवीवी महिला-पुरूष समानता को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा की दृष्टि से पिछड़े ब्लाकों में बालिकाओं पर विशेष ध्यान देते हुए कस्तूरबा गांधी बालिका विधालय स्कीम मुख्य रूप से अ.जा., अ.ज.जा. अन्य पिछङे वर्ग और अल्पसंख्यक समुदायों की बालिकाओं हेतु उच्च प्राथमिक स्तर पर आवासीय विधालय उपलब्ध कराती है। इस स्कीम में अ.जा., अ.ज.जा., अन्य पिछडे वर्गों अथवा अल्पसंख्यक समुदायों की बालिकाओं हेतु न्यूनतम 75% आरक्षण की व्यवस्था है और शेष 25% सीटें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों की बालिकाओं को प्रदान की जाती है। ये स्कूल शैक्षिक रूप से पिछड़े उन ब्लॉकों में जहां ग्रामीण महिला साक्षरता दर 30% से कम है और उन शहरी क्षेत्रों में जहां महिला साक्षरता राष्ट्रीय औसत से कम है, स्थापित किए जाते हैं। 27 राज्यों में ये आवासीय स्कूल स्थापित किए गए हैं यथा : असम, आंध्र प्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, दिल्ली, झारखण्ड, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, जम्मू व कश्मीर, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ., मणिपुर, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल और दादर व नगर हवेली संघशासित प्रदेश। 30 सितम्बर, 2009 तक भारत सरकार द्वारा 2573 कस्तूरबा गांधी बालिका विधालय संस्वीकृत किए गए। दिनांक 30 सितम्बर, 2010 तक राज्यों में 2567 कस्तूरबा गांधी बालिका विधालयों (अर्थात् 99.77%) के प्रचालित होने की सूचना प्राप्त हुई और 2,38,550 बालिकाओं को इनमें नामांकित किया गया जिनमें 58,271 अ.जा. बालिकाएं (27.07%), 60,439 अ.ज.जा. बालिकाएं (28.08%), 56,454 अ.पि.व. बालिकाएं (26.23%), 21,553 बी.पी.एल बालिकाएं (10.01%), 18,547 अल्पसंख्यक बालिकाएं 8.62% हैं।
एनपीईजीईएल विशेष रूप से स्कूल न जाने वाली बालिकाओं जिन तक 'पहुंचना कठिन' है, तक पहुंचता है। यह सर्व शिक्षा अभियान का एक ऐसा महत्वपूर्ण घटक है जो सामान्य सर्व शिक्षा अभियान उपायों के जरिए बालिका शिक्षा हेतु निवेशों के अतिरिक्त बालिका शिक्षा में बढ़ोतरी करने के लिए अतिरिक्त सहायता की व्यवस्था करता है। इस कार्यक्रम में गहन सामुदायिक सक्रियता तथा स्कूलों में बालिका नामांकन का पर्यवेक्षण करके प्रत्येक क्लस्टर में ''एक मॉडल विधालय'' विकसित करने की व्यवस्था की गई है। शिक्षकों को बालक-बालिका के प्रति संवेदनशील बनाना, बालक-बालिका संवेदी शिक्षण सामग्रियों का विकास करना, और जरूरत आधारित प्रोत्साहनों जैसे सहायक, लेखन सामग्री, अभ्यास-पुस्तिकाओं तथा वर्दियों आदि का प्रावधान करना इस कार्यक्रम के तहत प्रयासों में से कुछ प्रयास हैं।
एनपीईजीईएल शैक्षिक रूप से पिछङे ऐसे ब्लॉकों में कार्यान्वित की जाती है जहां ग्रामीण महिला साक्षरता स्तर राष्ट्रीय औसत से कम और महिला-पुरूष साक्षरता अंतराल राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जिलों के ऐसे ब्लॉकों में जो शैक्षिक रूप से पिछडे ब्लॉकों में शामिल नहीं हैं परन्तु जहां कम से कम 5% अ.जा./अ.ज.जा. के व्यक्ति रहते है और जहां अ.जा./अ.ज.जा. महिला साक्षरता दर 10% से कम है और चुनिंदा शहरी झुग्गी बस्तियों में भी कार्यान्वित की जा रही है। पात्र 25 राज्यों में इस स्कीम के तहत शैक्षिक रूप से पिछडे लगभग 3286 ब्लॉकों को शामिल किया गया है। एन पी ई जी ई एल के तहत, लगभग 40322 मॉडल क्लस्टर विधालय खोले गए हैं 10,104 ई सी सी ई केन्द्रों को सहायता दी जा रही है, 26838 अतिरिक्त कक्षा-कक्ष निर्मित किए गए हैं और 2,14,731 शिक्षकों को बालक-बालिका संवेदनशीलता के बारे में प्रशिक्षण दिया गया है, 2,41,8036 बालिकाओं को उपचारात्मक शिक्षण प्रदान किया गया, 4,37,645 बालिकाओं हेतु सान्तराल पाठ्यक्रम चलाया गया, लगभग 1,41,26,572 बालिकाओं को वर्दियां आदि जैसे अतिरिक्त प्रोत्साहन (30 दिसम्बर, 2010 तक) शामिल हैं।
वर्ष 2011-12 के लिए `21000 करोड़ के परिव्यय का प्रस्ताव किया गया है।
शिक्षा का अधिकार
संविधान (86वां) संशोधन अधिनियम, 2002 के माध्यम से भारत के संविधान में अनुच्छेद 21-क शामिल किया गया है ताकि छह से चौदह वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को विधि के माध्यम से राज्य द्वारा यथानिर्धारित मौलिक अधिकार के रूप में नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान की जा सके। नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 जो अनुच्छेद 21-क के अंतर्गत परिकल्पित अनुवर्ती विधान का प्रतिनिधित्व करता है, का अर्थ है कि प्रत्येक बच्चे को कतिपय आवश्यक मानदंडों एवं मानकों को पूरा करने वाले औपचारिक विद्यालय में संतोषप्रद और साम्यपूर्ण गुणवत्ता की पूर्णकालिक प्रारंभिक शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 21-क और आरटीई अधिनियम 1 अप्रैल 2010 से प्रभावी हुआ। आरटीई अधिनियम के शीर्षक में 'नि:शुल्क और अनिवार्य' शब्द सम्मिलित है। 'नि:शुल्क शिक्षा' का अर्थ है कि किसी बालक को यथास्थिति उसके माता-पिता, समुचित सरकार द्वारा स्थापित स्कूल से अलग स्कूल में दाखिल करते हैं तो प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने पर उपगत व्यय की प्रतिपूर्ति के लिए कोई दावा करने का हकदार नहीं होगा। 'अनिवार्य शिक्षा'' पद से समुचित सरकार तथा स्थानीय प्राधिकरण की छह से चौदह वर्ष तक की आयु के प्रत्येक बालक द्वारा प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और उसको पूरा करने को सुनिश्चित करने की बाध्यता अभिप्रेत है। इससे भारत अधिकार आधारित कार्यढांचे की ओर अग्रसर होता है जिससे केन्द्र और राज्य सरकारें आरटीई अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार संविधान के अनुच्छेद 21-क में दिए गए अनुसार बच्चे के मौलिक अधिकार के रूप में कार्यान्वित करने के लिए अभिप्रेत है।
आरटीई अधिनियम, 2009 में निम्नलिखित के लिए
प्रावधान है:
1.
आसपास के स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा के पूरा
होने तक बच्चों को नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार।
2.
यह स्पष्ट करता है कि 'प्रारंभिक शिक्षा का
अभिप्राय 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को नि:शुल्क प्रारंभिक शिक्षा
प्रदान करने तथा अनिवार्य दाखिला, उपस्थिति एवं प्रारंभिक शिक्षा का पूरा होना
सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त सरकार के दायित्व से है। ''नि:शुल्क'' का
अभिप्राय यह है कि कोई भी बच्चा किसी भी प्रकार का शुल्क या प्रभार या व्यय अदा
करने के लिए जिम्मेदार नहीं होगा जो उसे प्रारंभिक शिक्षा की पढ़ाई करने एवं पूरा
करने से रोक सकता है।
3.
यह गैर दाखिल बच्चे की आयु के अनुसार कक्षा
में दाखिला के लिए प्रावधान करता है।
4.
यह नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने,
तथा केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच वित्तीय एवं अन्य जिम्मेदारियों
की हिस्सेदारी में उपयुक्त सरकारों, स्थानीय प्राधिकरण एवं अभिभावकों के कर्तव्यों
एवं जिम्मेदारियों को विनिर्दिष्ट करता है।
5.
यह अन्य बातों के साथ शिक्षक छात्र अनुपात
(पीटीआर), भवन एवं अवसंरचना, स्कूल के कार्य घंटों, शिक्षकों के कार्य घंटों से
संबंधित मानक एवं मानदंड विहित करता है।
6.
यह सुनिश्चित करता है कि निर्दिष्ट शिक्षक
छात्र अनुपात प्रत्येक स्कूल के लिए अनुरक्षित किया जाए, न कि केवल राज्य या
जिला या ब्लाक स्तर के पदों में कोई शहरी-ग्रामीण असंतुलन नहीं है, यह शिक्षकों
की तर्कसंगत तैनाती का प्रावधान करता है। यह 10 वर्षीय जनगणना, स्थानीय
प्राधिकरण, राज्य विधानमंडलों एवं संसद के चुनावों तथा आपदा राहत को छोड़कर गैर
शैक्षिक कार्यों में शिक्षकों की तैनाती का भी निषेध करता है।
7.
यह उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों अर्थात
अपेक्षित प्रवेश एवं शैक्षिक अर्हता वाले शिक्षकों की नियुक्ति के लिए प्रावधान
करता है।
8.
यह 1.शारीरिक दंड एवं मानसिक
उत्पीड़न,2.बच्चों के दाखिले के लिए स्क्रीनिंग प्रक्रिया,3.कैपिटेशन
फीस,4.शिक्षकों द्वारा निजी शिक्षण,5.मान्यता के बिना स्कूलों के संचालन का
निषेध करता है।
9.
यह संविधान में अधिष्ठापित मूल्यों तथा ऐसे
मूल्यों के अनुरूप पाठ्यचर्या के विकास का प्रावधान करता है जो बच्चे के ज्ञान,
क्षमता एवं प्रतिभा का निर्माण करते हुए तथा बाल अनुकूलन एवं बाल केन्द्रित अध्ययन
के माध्यम से डर, ट्रोमा एवं चिंता से मुक्त करते हुए बच्चों के चहुंमुखी विकास
का सुनिश्चय करेंगे।
ये उद्देश्य विभाग के निम्नलिखित मुख्य
कार्यक्रमों के माध्यम से पूरा किए जाने के लिए आशयित हैं:-
·
प्रारंभिक स्तर: सर्व शिक्षा अभियान और मध्याह्न
भोजन
·
माध्यमिक स्तर: राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा
अभियान, आदर्श विद्यालय।
·
व्यावसायिक शिक्षा, बालिका छात्रावास
·
नि:शक्त की सम्मिलित शिक्षा, आईसीटी@स्कूल।
·
प्रौढ़ शिक्षा: साक्षर भारत
·
अध्यापक शिक्षा: अध्यापक शिक्षा बढ़ाने के
लिए योजना
·
महिला शिक्षा: महिला समाख्या।
·
अल्पसंख्यक शिक्षा: मदरसों में उत्तम शिक्षा
प्रदान करने के लिए योजना।
·
अल्पसंख्यक संस्थानों का आधारिक विकास।
मिशन:
विभाग निम्नलिखित प्रयास करता है-
·
सभी बच्चों को प्रारंभिक स्तर पर नि:शुल्क
एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना।
·
शिक्षा का राष्ट्रीय और समाकलनात्मक स्वरूप
लागू करने के लिए राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के साथ भागीदार बनाना।
·
उत्तम स्कूल शिक्षा और साक्षरता की सहायता से
संवैधानिक मूल्यों को समर्पित सोसाइटी बनाना।
·
उत्तम माध्यमिक शिक्षा के लिए अवसरों को
सार्वभौमिक बनाना।
उद्देश्य
देश के प्रत्येक योग्य विद्यार्थी के लिए
माध्यमिक शिक्षा के स्वप्न को साकार करने के लिए विभाग के उद्देश्य बिलकुल स्पष्ट
हैं, इसे निम्नलिखित करना है-
·
नेटवर्क का विस्तार करके,
उत्तम स्कूल शिक्षा के प्रति पहुंच बढ़ाना।
·
कमजोर वर्गों के अतिरिक्त वंचित ग्रुपों, जिन्हें
अब तक वंचित रखा गया था, को शामिल करके माध्यमिक शिक्षा प्रणाली को समान बनाना।
·
वर्तमान संस्थानों की सहायता करके और नए संस्थानों
को स्थापित करना सुविधाजनक बनाकर शिक्षा के उत्तम और समुन्नत स्तर सुनिश्चित
करना।
·
संस्थागत और व्यवस्थित सुधारों के अनुसार
नीति स्तरीय परिवर्तन प्रारंभ करना, जो आगे विश्व स्तर की माध्यमिक शिक्षा
पाठ्यचर्या तैयार करें जो बच्चों में प्रतिभा पैदा करने योग्य हो।
मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील)
अधिक छात्रों के नामांकन और अधिक छात्रों की नियमित उपस्थिति के संबंध में स्कूल भागीदारी पर मध्याह्न भोजन का महत्वपूर्ण प्रभाव पङता है। अधिकतर बच्चे खाली पेट स्कूल पहुंचते हैं। जो बच्चे स्कूल आने से पहले भोजन करते हैं उन्हें भी दोपहर तक भूख लग आती है और वे अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं। मध्याह्न भोजन बच्चों के लिए ''पूरक पोषण'' के स्रोत और उनके स्वस्थ विकास के रूप में भी कार्य कर सकता है। यह समतावादी मूल्यों के प्रसार में भी सहायता कर सकता है क्योंकि कक्षा में विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे साथ में बैठते हैं और साथ-साथ खाना खाते हैं। विशेष रूप से मध्याह्न भोजन स्कूल में बच्चों के मध्य जाति व वर्ग के अवरोध को मिटाने में सहायता कर सकता है। स्कूल की भागीदारी में लैंगिक अंतराल को भी यह कार्यक्रम कम कर सकता है क्योंकि यह बालिकाओं को स्कूल जाने से रोकने वाले अवरोधों को समाप्त करने में भी सहायता करता है। मध्याह्न भोजन स्कीम छात्रों के ज्ञानात्मक, भावात्मक और सामाजिक विकास में मदद करती है। सुनियोजित मध्याह्न भोजन को बच्चों में विभिन्न अच्छी आदते डालने के अवसर के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। यह स्कीम महिलाओं को रोजगार के उपयोगी स्रोत भी प्रदान करती है।
मध्याह्न भोजन स्कीम देश के 2408 ब्लॉकों में एक केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम के रूप में 15 अगस्त, 1995 को आरंभ की गई थी। वर्ष 1997-98 तक यह कार्यक्रम देश के सभी ब्लाकों में आरंभ कर दिया गया। वर्ष 2003 में इसका विस्तार शिक्षा गारंटी केन्द्रों और वैकल्पिक व नवाचारी शिक्षा केन्द्रों में पढ़ने वाले बच्चों तक कर दिया गया। अक्तूबर, 2007 से इसका देश के शैक्षणिक रूप से पिछड़े 3479 ब्लाकों में कक्षा VI से VIII में पढने वाले बच्चों तक विस्तार कर दिया गया है। वर्ष 2008-09 से यह कार्यक्रम देश के सभी क्षेत्रों में उच्च प्राथमिक स्तर पर पढने वाले सभी बच्चों के लिए कर दिया गया है। राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना विद्यालयों को भी प्रारंभिक स्तर पर मध्याह्न भोजन योजना के अंतर्गत
01.04.2010 से शामिल किया गया है।
इस स्कीम के लक्ष्य भारत में अधिकांश बच्चों की दो मुख्य समस्याओं अर्थात् भूख और शिक्षा का इस प्रकार समाधान करना है :-
(i)सरकारी स्थानीय निकाय और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल और ईजीएस व एआईई केन्द्रों तथा सर्व शिक्षा अभियान के तहत सहायता प्राप्त मदरसों एवं मकतबों में कक्षा I से VIII के बच्चों के पोषण स्तर में सुधार करना
(ii)लाभवंचित वर्गों के गरीब बच्चों को नियमित रूप से स्कूल आने और कक्षा के कार्यकलापों पर ध्यान केन्द्रित करने में सहायता करना, और
(iii)ग्रीष्मावकाश के दौरान अकाल-पीडि़त क्षेत्रों में प्रारंभिक स्तर के बच्चों को पोषण सम्बन्धी सहायता प्रदान करना।
केन्द्रीय सहायता के संघटक:
इस समय मध्याह्न भोजन स्कीम राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों को निम्नलिखित के लिए सहायता प्रदान करती हैः-
(i)प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए 100 ग्राम प्रति बच्चा प्रति स्कूल दिवस
की दर से और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के लिए 150 ग्राम प्रति बच्चा प्रति स्कूल दिवस की दर से भारतीय खाध निगम के निकटस्थ गोदाम से निःशुल्क खाद्यान्न (गेहूं/चावल) की आपूर्ति। केन्द्र सरकार भारतीय खाद्य निगम को खाद्यान्न की लागत की प्रतिपूर्ति करती है।
(ii)11 विशेष श्रेणी वाले राज्यों (अर्थात-अरूणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम, जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश उत्तराखण्ड और त्रिपुरा) के लिए दिनांक
1.12.2009 से इनमें प्रचलित पी.डी.सी. दरों के अनुसार परिवहन सहायता। अन्य राज्यों तथा संघ राज्य क्षेत्रों के लिए 75/-रू. प्रति क्विंटल की अधिकतम सीमा के अधीन भारतीय खाद्य निगम से प्राथमिक स्कूल तक खाद्यान्न के परिवहन में हुई वास्तविक लागत की प्रतिपूर्ति।
(iii)दिनांक
1.12.2009 से भोजन पकाने की लागत (श्रम और प्रशासनिक प्रभार को छोङकर) प्राथमिक बच्चों के लिए 2.50 रूपए की दर से और उच्च प्राथमिक बच्चों के लिए 3.75 रूपए की दर से प्रदान की जाती है और दिनांक 1.4.2010 तथा दिनांक 1.4.2011 को इसे पुनः 7.5 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। भोजन पकाने की लागत की केन्द्र और पूर्वोत्तर राज्यों के मध्य हिस्सेदारी 90:10 के आधार पर है और अन्य राज्यों/संघ राज्यों के साथ 75:25 के आधार पर वहन की जाएगी। तद्नुसार केन्द्र की हिस्सेदारी और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की न्यूनतम हिस्सेदारी वर्ष 2010-11 के लिए इस प्रकार हैः-
स्तर
|
प्रति भोजन कुल लागत
|
केन्द्र-राज्य हिस्सेदारी
|
|||
गैर-पूर्वोत्तर राज्य (75:25)
|
पूर्वोत्तर राज्य (90:10)
|
||||
केन्द्र
|
राज्य
|
केन्द्र
|
राज्य
|
||
प्राथमिक
|
2.69 रू.
|
2.02 रू.
|
0.67 रू.
|
2.42 रू.
|
0.27 रू.
|
उच्च प्राथमिक
|
4.03 रू.
|
3.02 रू.
|
1.01 रू.
|
3.63 रू.
|
0.40 रू.
|
भोजन पकाने की लागत में दालों, सब्जियों, भोजन पकाने के तेल और मिर्च-मसालों, ईंधन इत्यादि की लागत शामिल है।
(iv)पूरे देश में किचन-कम-स्टोर के निर्माण की प्रति विद्यालय 60,000 रूपएकी एक समान दर के स्थान पर दिनांक
1.12.2009 से निर्माण लागत को कुरसी क्षेत्र मानदण्डों और राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों में प्रचलित राज्य अनुसूची दरों के आधार पर निर्धारित किया जाना है। किचन-कम-स्टोर की निर्माण लागत की हिस्सेदारी केन्द्र और पूर्वोत्तर राज्यों के मध्य 90:10 आधार पर तथा अन्य राज्यों के साथ 75:25 के आधार पर की जाएगी। इस विभाग ने दिनांक
31.12.2009 के अपने पत्र संख्या 1-1/2009-डेस्क (एम.डी.एम.) के जरिए 100 बच्चों तक स्कूलों में किचन-कम-स्टोर के निर्माण हेतु 20 वर्ग मी० का क्षेत्र निर्धारित किया है। प्रत्येक अतिरिक्त 100 बच्चों तक के लिए 4 वर्ग मीटर अतिरिक्त कुरसी क्षेत्र जोड़ा जाएगा। राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को अपनी स्थानीय दशाओं के आधार पर 100 बच्चों के स्लैब को संशोधित करने का अधिकार होगा।
(v)5000 रूपए प्रति विद्यालय की औसत लागत के आधार पर किचन के सामान प्राप्त करने के लिए सहायता दी जाती है। किचन के सामान में निम्नलिखित शामिल हैं:-
(क)भोजन पकाने का सामान (स्टोव, चूल्हा इत्यादि)
(ख)खाद्यान्न और अन्य सामान को स्टोर करने के लिए कंटेनर
(ग)भोजन पकाने और वितरित करने के बर्तन।
(vi)दिनांक
1.12.2009 से रसोइये-कम-सहायक को प्रदान किए जाने वाले मानदेय को 1000 रूपए प्रतिमाह करना और 25 विद्यार्थियों वाले विधालयों में एक रसोइये-कम-सहायक, 26 से 100 विद्यार्थी वाले विद्यालयों में दो रसोइये-कम-सहायक और अतिरिक्त प्रत्येक 100 विद्यार्थियों तक के लिए एक अतिरिक्त रसोइये-कम-सहायक की नियुक्ति करना। रसोइये-कम-सहायक को प्रदान किए जाने वाले मानदेय के लिए केन्द्र सरकार और राज्यों के मध्य हिस्सेदारी पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 तथा अन्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए 75:25 के आधार पर होगी।
(vii)राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के लिए इस स्कीम के प्रबंधन, अनुवीक्षण तथा मूल्यांकन (एम.एम.ई.) के लिए सहायता (क) खाद्यान्न, (ख) परिवहन लागत और (ग) भोजन पकाने की लागत (घ) रसोइया-सह-सहायक को मानदेय के लिए कुल सहायताका1.8 प्रतिशत, (क)खाद्यान्न, (ख) परिवहन लागत और (ग) भोजन पकाने की लागत (घ) रसोइया-सह-सहायक को मानदेय की कुल सहायता के 0.2 प्रतिशत का उपयोग राष्ट्रीय स्तर पर प्रबंधन, अनुवीक्षण तथा मूल्यांकन उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
वर्ष 2011-12 के लिए `10380 करोड़ के परिव्यय का प्रस्ताव किया गया है।
अधिक जानकारी के लिए, : http://mdm.nic.in/
महिला समाख्या
सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछङे वर्गों के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की शिक्षा और सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित कार्यक्रम के रूप में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के लक्ष्यों के अनुसार वर्ष 1989 में महिला समाख्या कार्यक्रम शुरू किया गया। महिला समाख्या स्कीम ने समानता के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए शिक्षा के केंद्रीकरण को मान्यता प्रदान की है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए महिला समाख्या के तहत एक नवाचारी दृष्टिकोण अपनाया गया है जिसमें मात्र लक्ष्यों को प्राप्त करने के बजाय प्रक्रिया पर विशेष ध्यान दिया गया है। महिला समाख्या के तहत शिक्षा को न केवल साक्षरता कौशल प्राप्त करने के माध्यम के रूप में माना गया है अपितु इसे प्रश्न पूछने,मुद्दों और समस्याओं का विशेष रूप से विश्लेषण करने तथा समाधान करने की प्रक्रिया के रूप में माना गया है। इसके तहत महिलाओं के लिए ऐसा वातावरण तैयार करने का प्रयास किया जाता है जिसमें महिलाएं स्वयं अपनी ओर से अध्ययन कर सकें, अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित कर सके और अपनी पसंद के अनुसार ज्ञान तथा सूचना प्राप्त कर सके। इसमें महिलाओं में अपनी अवधारणा में परिवर्तन लाने तथा महिलाओं की ''परम्परागत भूमिकाओं'' के सम्बन्ध में समाज की अवधारणा में परिवर्तन लाने का प्रयास किया गया है। यह अनिवार्य रूप से महिलाओं विशेष रूप से सामाजिक और आर्थिक रूप से लाभवंचित तथा अन्य कमजोर वर्गों की महिलाओं को सक्षम बनाना है ताकि वे अलगाव और आत्मविश्वास की कमी, कठोर सामाजिक प्रथाओं जिन्हें उनके अध्ययन में शामिल किया गया है, का समाधान कर सकें, अस्तित्व के लिए संघर्ष कर सकें। इस प्रक्रिया से महिलाएं सशक्त होगी।
इस स्कीम के उद्देश्य इस प्रकार हैं: (i)महिलाओं की आत्मछवि तथा आत्मविश्वास में वृद्घि करना; (ii)ऐसा वातावरण तैयार करना जहां महिलाएं ज्ञान तथा सूचना प्राप्त कर सकें जिससे वे समाज में एक सकारात्मक भूमिका निभा सकें;
(iii)प्रबंधन की विकेंद्रीकृत तथा सहभागी पद्घति तैयार करना; (iv) महिला संघों को गांवों में शैक्षिक कार्यकलापों की सुविधा तथा मानीटरिंग करने में समर्थ बनाना; (v)महिलाओं तथा किशोरियों की शिक्षा के लिए अवसर प्रदान करना; (vi)औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों में महिलाओं तथा लड़कियों की अधिक सहभागिता प्राप्त करना।
महिला समाख्या स्कीम इन महिला संघों के माध्यम से बुनियादी स्तर पर महिलाओं की अधिकारिता की नींव रखने में सफल हुई हैं। राज्यों में संघों ने दैनिक न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने, पेयजल, नागरिक सुविधाओं में सुधार लाने, स्वास्थ्य तथा पोषण, संसाधन उपलब्ध कराने तथा नियंत्रित करने, अपने बच्चों, विशेष रूप से बालिकाओं के लिए शिक्षा के अवसर सुनिश्चित करने से लेकर राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने, उनकी चिंताओं को दूर करने तथा महिलाओं के विरूद्घ हिंसा, बाल-विवाह, दहेज आदि सामाजिक समस्याओं का समाधान करने जैसे विषयों तथा समस्याओं को दूर करने में पहल की है। महिला समाख्या योजना के प्रभावीपन ने महिलाओं को शिक्षा हेतु गतिशील करके सर्व शिक्षा अभियान(एस.एस.ए.) के साथ भी निकट अन्तरण करने में परिणत हुई है।
वर्तमान में महिला समाख्या योजना को 10 राज्यों नामतः, आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ, झारखंड, कर्नाटक, केरल, गुजरात, उत्तर प्रदेश और उत्तरांचल के 104 जिलों और लगभग 32574 से भी अधिक गांवों में कार्यान्वित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम को राजस्थान राज्य में शुरू करने के लिए राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई की जा रही है। इस स्कीम के लिए 11वीं योजना का बजटीय परिव्यय 210.00 करोड रू. है।
वर्ष 2011-12 के लिए ` 50 करोड़ के परिव्यय का प्रस्ताव किया गया है।
अल्पसंख्यक संस्थान में अवसंरचना विकास के लिए योजना
आईडीएमआई स्कीम का उद्देश्य अल्पसंख्यक संस्थाओं (प्रारम्भिक/माध्यमिक/ वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों) में स्कूल आधारभूत सुविधाओं की व्यवस्था करके तथा उसे सुदृढ. करके अल्पसंख्यकों की शिक्षा को सुकर बनाना है ताकि अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों की औपचारिक शिक्षा के लिए सुविधाओं का विस्तार किया जा सके। अन्य बातों के साथ- साथ इस स्कीम का उद्देश्य बालिकाओं, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और उन्हें, जो अल्पसंख्यकों में शैक्षिक दृष्टि से सबसे अधिक वंचित है, के लिए शैक्षिक सुविधाओं को प्रोत्साहित करना है।
वर्ष 2011-12 के लिए `50 करोड़ के परिव्यय का प्रस्ताव किया गया है।
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